२४ वर्ष का वह गोरा युवक अपनी माँ के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हुआ.
“माँ मैं ज्ञान की तलाश में भ्रमण करने जाना चाहता हूं. आप आशीर्वाद दें कि मैं सफल होऊं.” युवक ने विनीत स्वर में कहा.
माँ
प्यार और बिछोह के दुख के आंसू आँखों में भर के बोली – “बेटा ! यदि जाना
चाहते हो तो जाओ ईश्वर तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता
प्रदान करे. मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा किंतु तुम मेरी तीन
बातों को ध्यान में रखना.
युवक
ने पूछा “वह कौनसी बातें हैं माँ. मैं सदैव आपकी आज्ञाओं को अपने शीश पर
रखूँगा.” माँ बोली “बेटा ! एक तो यह है कि स्वादिष्ट भोजन करना, दूसरे सुख
की नींद सोना और तीसरे किसी मजबूत किले में रहना.” यह सुनकर युवक हँस पड़ा
और बोला – ‘माँ मैं ज्ञान कि खोज में जा रहा हूँ पता नहीं कहाँ २ भटकना
पड़े खाना मिले या न मिले. रात्रि का भी क्या निश्चय रहेगा कि कहाँ बीतेगी.
जब रहने और खाने का निश्चय ही नहीं है तो किसी मजबूत किले में रहने की बात
कहाँ से उठती है. माँ ने कहा – बेटा तुम ज्ञान कि तलाश में जा रहे हो और
मेरी बातों को न समझ सके.
सुनो –
जब तुम्हें भूख बहुत जोरों से लगेगी तभी तुम कुछ खाना. भूख कि अवस्था में
जो कुछ भी रूखा सूखा तुम खाओगे वही तुम्हे स्वादिष्ट लगेगा, दूसरे जब तुम
थक जाओगे तब तुम चाहे जमीन पर लेटोगे या पहाड़ पर किंतु तुम्हारी नींद सुख
की होगी. तीसरे, किसी ऐसे गुरु कि शरण में जाना जो हर अवस्था में हर जगह पर
तुम्हारी रक्षा करे. समरथ गुरु की साया मजबूत किले की भांति तुम्हारी
रक्षा करेगी. युवक ने माँ की बातों को ध्यान से सुना. उसने माँ की चरण रज
को अपने माथे पर लगाया और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निकल पड़ा. आगे
चलकर इस युवक को लोगों ने ‘स्वामी रामतीर्थ’ के नाम से जाना.